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कविता

गति

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी


बर्फ गिर रही है
पेड़ खड़े हैं श्वेत ठिठुरे हुए

एक नुकीला मैदान है नीचे
और ऊपर एक पहाड़ी बर्फ ढकी
बीच में एक आदमी है
चढ़ता हुआ बढ़ता हुआ चोटी की ओर

कितना भयावह लगता है
जब एक आदमी चलता है
चलता है खामोश घाटी के बीच
और बर्फ गिर रही होती है चारों ओर।

 


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